कहा जाता है कि भगवान साँवलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से है। किंवदंतियों के अनुसार, सांवलिया सेठ मीरा बाई के पास वही गिरधर गोपाल थे जिनकी वे पूजा करते थे। मीरा बाई इन मूर्तियों के साथ संत महात्माओं की जनजाति में यात्रा करती थीं। दयाराम नामक संतों की एक समान जनजाति थी जिनकी यह प्रतिमा थी।कहा जाता है कि जब औरंगजेब की मुगल सेना मंदिरों को तोड़ रही थी, जब मुगल सैनिकों ने इन मूर्तियों से मुलाकात की, तो मेवाड़ राज्य में संत दयाराम जी ने भगवान राम से प्रेरित होकर, बगद के अवतार के माध्यम से इन मूर्तियों को प्रेरित किया भादसौड़ा की छापर (खुला मैदान ) में एक वट-वृक्ष के निचे गड्ढा खोद के पधरा दिया और फिर समय बीतने के साथ संत दयाराम जी का देवलोकगमन हो गया।
श्री साँवलिया सेठ की मूर्ति प्रकट स्थल
किवदंतियों के अनुसार कालान्तर में सन 1840 मे मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को एक सपना आया की भादसोड़ा-बागूंड गाँव की सीमा के छापर मे 3 मूर्तिया ज़मीन मे दबी हुई है, जब उस जगह पर खुदाई की गयी तो भोलाराम का सपना सही निकला और वहा से एक जैसी 3 मूर्तिया प्रकट हुयी। सभी मूर्तिया बहुत ही मनोहारी थी। देखते ही देखते ये खबर सब तरफ फ़ैल गयी और आस-पास के लोग प्राकट्य स्थल पर पहुचने लगे।
श्री साँवलिया सेठ का मंदिर निर्माण
फिर सर्वसम्मति से 3 में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम ले जायी गयी, भादसोड़ा में सुथार जाति के अत्यंत ही प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत रहते थे। उनके निर्देशन में उदयपुर मेवाड राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से साँवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए यह साँवलिया सेठ प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। मझली मूर्ति को वही खुदाई की जगह स्थापित किया गया इसे प्राकट्य स्थल मंदिर भी कहा जाता है। सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुर्जर द्वारा मंडफिया ग्राम ले जायी गयी जो उन्होंने अपने घर के परिण्डे में स्थापित करके पूजा आरम्भ कर दी ।
आखिरकार, हर जगह महान मंदिर बनाए गए हैं। तीनों मंदिरों की प्रसिद्धि भी दूर-दूर तक फैली है। आज भी, हर साल लाखों यात्री श्री सांवलिया सेठ से मिलने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
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श्री सांवलिया सेठ |
किवदंतियों के अनुसार कालान्तर में सन 1840 मे मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को एक सपना आया की भादसोड़ा-बागूंड गाँव की सीमा के छापर मे 3 मूर्तिया ज़मीन मे दबी हुई है, जब उस जगह पर खुदाई की गयी तो भोलाराम का सपना सही निकला और वहा से एक जैसी 3 मूर्तिया प्रकट हुयी। सभी मूर्तिया बहुत ही मनोहारी थी। देखते ही देखते ये खबर सब तरफ फ़ैल गयी और आस-पास के लोग प्राकट्य स्थल पर पहुचने लगे।
श्री साँवलिया सेठ का मंदिर निर्माण
फिर सर्वसम्मति से 3 में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम ले जायी गयी, भादसोड़ा में सुथार जाति के अत्यंत ही प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत रहते थे। उनके निर्देशन में उदयपुर मेवाड राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से साँवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए यह साँवलिया सेठ प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। मझली मूर्ति को वही खुदाई की जगह स्थापित किया गया इसे प्राकट्य स्थल मंदिर भी कहा जाता है। सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुर्जर द्वारा मंडफिया ग्राम ले जायी गयी जो उन्होंने अपने घर के परिण्डे में स्थापित करके पूजा आरम्भ कर दी ।
आखिरकार, हर जगह महान मंदिर बनाए गए हैं। तीनों मंदिरों की प्रसिद्धि भी दूर-दूर तक फैली है। आज भी, हर साल लाखों यात्री श्री सांवलिया सेठ से मिलने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
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Nice sir
ReplyDeleteजय परशुराम |
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